इस राखी पर बहना तुम, इतना सा धर्मं निभा देना,
भाई से चाहे मिल ना पाओ,सास ससुर का मान बढ़ा देना,
ननद तुम्हारी शायद, ससुराल रोज ना आ पाए,
जब भी आये मेहमान बनकर, आकर तुरंत ही चली जाए,
बहु तुम्हे वो समझे भी तो, बेटी का धर्म निभा देना,
पीहर के संस्कारों से, ससुराल की बगिया महका देना,
तुम भी हो बेटी किसी की, इस बात को ना भुला देना,
रखना ख्याल सास ससुर का, बस इतना धर्म निभा देना|
माँ कहती है बहना तेरी, ससुराल में सुख तू पायेगी,
मिलने गर ना भी आ पाए, माँ-बाप का मान तो बढ़ाएगी,
दे प्यार सभी को इतना तू, इतनी अपनी हो जाएगी,
ननंद की कमी को भी तू, शायद पूरा भर पायेगी,
रिश्ते नातो की गर्माहट से, तू घर को स्वर्ग बनाएगी,
आँखों से चाहे दूर सही, माँ तेरी मोद मनाएगी|
जलता हु किस्मत से तेरी, तू दो-दो माँ-बाप पायेगी,
दो-दो माँ के चरणों में, दो-दो स्वर्ग, लुत्फ़ उठाएगी,
पीहर को आबाद किया, ससुराल को स्वर्ग बनाएगी|
बेटी बन कर उभरी है, बहु बनकर जानी जाएगी|
रिश्तो की यह गर्माहट, जीवन भर इसे अलाव देना,
जो सास ससुर खुशियाँ बांटे, बादल बन उन्हें समा लेना,
गर गुस्सा उन्हें आ जाए कभी, तुम प्यार भरी फुहार देना,
जब उम्र का तराजू झुकने लगे, चिडचिडापन उनका बढ़ने लगे,
तुम स्नेह का बादल बनकर के, भर भर कर बरसा देना,
जो प्यार दिया मुट्ठी भरकर, “भरत” वो अतुलित प्यार बना देना|
भाई की आशीष यही, माँ-बाप की ख्वाहिश यही,
बेटी बन कर तू रही यहाँ, बेटी वहां भी बन जाएगी,
सास ससुर की सेवा में, बस इतना धर्म निभा देना|