Posted in What I Feel, tagged 2018, aansu, अंधकार भगाये, अरमान, आनन्द, उन्नति, उम्मीद, कवि, कविता, गरीबी, जिंदगी, जीना, जीवन, त्यौहार, दशहरा, दिल, दीपावली, दीवार, दीवारे, दीवाली, पर्यावरण, पर्यावरण दिवस, पीयूष, बेगवानी, बेगवॉनी, भरत, भरत बेगवानी, मजहब, मेरी कामना, राजलदेसर, विजयादशमी, शायरी, हिंदी, हिंदी कविता, Begwani, Bharat, bharat Begwani, bharat jain, Deepawali, dil, Diwali, earth day, Enviournment, Environment, hindi kavita, Hindi poem, hindi poetry, Jindgi, kavita, khushi, Poem, Poetry, rajaldesar, rajasthan, shayar, shayari, terapanth on November 1, 2018|
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दीवाली के शोर ने,
बाजारों की चकाचौंध ने,
और मिठाई की दुकानों ने,
तरसा दिया था उजालों ने,
मेरा घर रोशन किया,
पड़ोसी के दियो के उजालों ने।
बाजारों में बढ़ती महंगाई,
मौके का फायदा उठाती दुकाने,
कुछ खरीदने को तरसता मन,
पर मजबूर करती खाली जेब,
दिल मे मिठास घोल दी,
मीठी शुभकामना देने वालों ने।
रिश्वत से भर लिया घर, लेने वालों ने,
अवसर का लाभ लिया,
फायदा उठाने वालों ने,
पैसे वाले, पटाखें शराब और
जुए में फूंक के सोये,
खाली जेब वाले भूखे ही सोये,
“भरत” ये कैसी दीवाली,
अंधेरे छोड़ दिये उजालों ने,
मांगी थी सुख समृद्धि शांति भरी नींद,
पर सोने ना दिया इन्ही सवालों ने।
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