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Archive for November, 2018


दीवाली के शोर ने,
बाजारों की चकाचौंध ने,
और मिठाई की दुकानों ने,
तरसा दिया था उजालों ने,
मेरा घर रोशन किया,
पड़ोसी के दियो के उजालों ने।

बाजारों में बढ़ती महंगाई,
मौके का फायदा उठाती दुकाने,
कुछ खरीदने को तरसता मन,
पर मजबूर करती खाली जेब,
दिल मे मिठास घोल दी,
मीठी शुभकामना देने वालों ने।

रिश्वत से भर लिया घर, लेने वालों ने,
अवसर का लाभ लिया,
फायदा उठाने वालों ने,
पैसे वाले, पटाखें शराब और
जुए में फूंक के सोये,
खाली जेब वाले भूखे ही सोये,
“भरत” ये कैसी दीवाली,
अंधेरे छोड़ दिये उजालों ने,
मांगी थी सुख समृद्धि शांति भरी नींद,
पर सोने ना दिया इन्ही सवालों ने।

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