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Archive for the ‘What I Feel’ Category


कही होता था अहसास,
कुछ अधूरा सा लगता था,
टंटोलता था रिश्ते को,
कुछ खालीपन सा लगता था।
जीने लगा जब इस अहसास को,
कुछ अजीब सा शुकुन मिला,
कुछ समझा उसको,
कुछ ओर समझने को,
दिल मचलने लगा।
बातें, मुलाकाते और अरमान,
सब परवान चढ़ते गए,
ये खालीपन के पैमाने,
खुद ब खुद भरते गए।
रिश्तों में गर्माहट और
एक दूजे के ख्याल,
की बदली छाने लगी।
मुझे उसकी और उसे मेरी,
जरूरत समझ आने लगी।
रिश्तों की यह अनोखी सुंदरता,
नजर आ रही थी,
पूर्णता एक से नही,
दोनों से ही बन पा रही थी,
ये उसका खालीपन,
मुझ में समा रहा था,
मेरे खालीपन को पूर्ण कर,
मुझे पूरा बना रहा था।

एक बात जो समझने में काफी समय लगा,
दरअसल,
ये खालीपन ही जीवन का सार है,
जब ये दूसरे के खालीपन से मिल जाता है,
तो दोनों ही पूर्णता प्राप्त कर लेते है,
जरूरत है,
तो सिर्फ समझने की,
ना कि मूल्यांकन करने की।

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मौन से शक्ति का संचार है,
मौन में ही अंतस: का सार है,
मौन रहती है ऋतुएं,
परिवर्तन मधुर लाती है,
मौन रह कर पृथ्वी,
धूरी पर चक्कर लगाती है।
दिन भर झक झक कर के,
शक्ति क्षीण हो जाती है,
अनावश्यक बातें कभी,
जीवन मे अर्थ नही लाती है,
अनमोल बीज सृजन के,
मरु में व्यर्थ हो जाते है,
बाह्य कोलाहल,
हृदय में चपलता फैलाते है।
गर हृदय में उतर कर,
मौन तुम धारण करो,
शब्द की शक्ति के
संचय का मानस करो,
मौन के परिपार्श्व में,
चिर आनंद की ध्वनि सुनो,
आत्म वाणी साक्षात्कार कर,
अंदर अनुभूति दिव्य करो,
तो,
वाणी में तुम्हारे,
दिव्य रस भर जाएंगे,
तेज, शक्ति, ओज से शब्द,
ओतप्रोत हो जाएगे,
जीवन, जगत और प्रकृति के,
रहस्य सब खुल जाएंगे।
सार्वभौम शक्तियों से,
साक्षात्कार हो जाएंगे।

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अणुव्रतों का पालन हो,
तो बदले युग की धारा,
मानवता बसे मानव में,
अणुव्रतों के द्वारा।
संयममय जीवन हो सबका,
सबको यह बतलाये,
सुधरे व्यक्ति समाज व्यक्ति से
सच्चा ज्ञान सिखाये,
अहिंसा, एकता, सहिष्णुता का,
बोधि पाठ पढ़ाये,
पर्यावरण और नशा मुक्ति की,
पावन राह दिखाये,
विश्व शांति का मार्ग प्रशस्त हो,
अणुव्रतों के द्वारा,
मानवता बसे मानव में,
अणुव्रतों के द्वारा।
सतवृति का मानव में,
होता रहे प्रसार,
दुष्प्रवृति का जन जन से,
होता रहे बहिष्कार,
क्षमा मैत्री और मानवता का,
हो चारों और प्रचार,
हिंसा, कपट, और भेद के,
बंद हो जाए द्वार
अपने से अपना अनुशासन,
अणुव्रतों के द्वारा,
मानवता बसे मानव में,
अणुव्रतों के द्वारा।

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सुमिरण मातृ भूमि का पल पल,
हर क्षण करता हूँ स्मरण,
पूजा तेरी करू रात दिन,
करू तुझे शत शत वंदन।

गंगा यमुना की साडी में लिपटी,
स्वर्णिम आभा न्यारी है,
सिर पे हिम का ताज लिए,
पैरो में जलतारी है,
हे मातृ भूमि, हे मातृ भूमि,
करता तुझको जीवन अर्पण।
शत शत वंदन, शत शत वंदन

मंदिर और मस्जिद की,
यहाँ ऋचाएं सजती है,
कही अजान तो कही आरती,
प्यारी धुन थिरकती है,
उत्तर हो या दक्षिण हो,
असीम शांति मिलती है,
मंदिर हो या मस्जिद हो,
गिरिजाघर हो या गुरुद्वारा
हिन्दू,मुस्लिम, सिख, ईसाई,
समर्पित करते तन मन सारा,
चहु दिशा में बजे घंटिया,
करती ह्रदय में एक स्पंदन।
शत शत वंदन, शत शत वंदन

सोलह श्रृंगारों की रौनक,
हर सुहागन हाथों सजती है,
रंग बिरंगी चुडियो की बाते,
दूर दूर तक चलती है,
मिठाइयों बात हो तो,
मुह में पानी आ जाता है,
खान पान में विविधता से,
हर विकल्प यहां मिल जाता है,
हर मन में हो हर्षोल्लास,
यु ही पल्लवित हो ये उपवन।
शत शत वंदन, शत शत वंदन

हर्षित होकर हर ऋतु का,
यहाँ स्वागत होता है,
तीज त्योहारो पर अब भी,
मिलने का उपक्रम चलता है,
मेले लगते है उत्सव में,
उमंगो की बयारे बहती है,
होली और दीवाली पर तो,
धमा चोकड़ी चलती है,
मेलों में सज धज कर,
आनंद उठाया जाता है,
विभिन्न वाद्य पर प्रफुल्लित हो,
मन मोद मनाया जाता है,
रथ यात्राएं जब निकले,
यह देव भूमि सज जाती है,
हे जननी मातृभूमि प्यारी,
मैं करता हर पल तेरा स्मरण।
”भरत” करता तुझको शत शत वंदन।।
शत शत वंदन।।

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खुद से भी मिलते रहिये,
मिलते और बिछड़ते जग में,
सुख दुख के इस गहन वन में,
सबकी अपनी अपनी राहे,
दृष्टि कभी भीतर भी डाले,
यादों का अंबार सँभाले,
खुद से खुद का परिचय करिए,
खुद से भी तो मिलते रहिये।

जीवन मे हर दम उठा पटक है,
कभी विरह तो कभी मिलन है,
कभी गमन तो कभी अचर है,
इस उलझन से आगे बढिए,
कोलाहल के भीतर सुनिए,
शांति छुपी है अंतर्मन में,
कभी इधर भी आते रहिये,
खुद से भी तो मिलते रहिये।

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जीवन पथ पर चलते जाना,
खुद अपनी राहे बनाना,
कठिनाई में मुस्कुराना,
बोझ दायित्वों का उठाना,
मित्र ये आसान नही।

तुम श्रेष्ठ हो,
तुम्ही उत्तम हो,
तुम प्रशंसा के हकदार भी हो,
यह सुनना है पसंद सभी को,
गलतियां कोई गिनाए,
तुमको कोई गलत बताए,
सुनके उसे अपना लेना,
मित्र ये आसान नही।

स्वतंत्रता के पंख लगा लो,
नए नए शौक सजालो,
ख्वाहिशें दिल की मनालो,
बचपन के सब स्वप्न मनालो,
बचपन जैसा मुस्कुराना,
मित्र ये आसान नही।

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दोस्ती


दोस्तो का बुरा हो,
और मेरा भला हो,
कह दिया भगवान से,
ये हमे मंजूर नही।
दोस्त तड़पे दर्द से,
और हम रहे खुशी में,
कह दिया जमाने से,
ये हमे मंजूर नही।
दोस्त की हो चाह,
वो मिल जाये हमे,
कह दिया किस्मत से,
सौगात ये मंजूर नही।
राह में बिछे कांटे दोस्त के,
हम को अगर दिखे नही,
ऐसी रोशनी के आलम,
ये हमे मंजूर नही।

सभी मित्रों को मित्रता दिवस की शुभकामनाएं॥

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धर्म मे धंधा मिले,
धंधे में भ्रष्टाचार,
राजनीति में धर्म मिले,
धर्म मे मिथ्या आचार,
त्राहि त्राहि हर और मचे,
ढूंढे तारणहार।
गरीब को जब सत्ता मिले,
अमीर बने बेकार,
साम्प्रदायिक सौहार्द बने,
झलके सत्य आचार,
यह जनता की जीत है,
और असत्य की हार।
अमीर-गरीब, उच्च-निम्न,
सबको समान अधिकार,
सबको अपनी आजादी,
स्वतंत्र है सबके विचार,
शोषण किसी का ना हो पाए,
ना कोई लाचार,
धर्म सभी अपना माने,
हर एक को है अधिकार,
अपनी विरासत अक्षुण्य रखे,
सबको शिक्षा पर अधिकार,
राम राज्य का स्वप्न सभी का
हो जाए साकार।
आदर्शवादी शासक हो,
सबका करे विकास,
राष्ट्र सुरक्षित चहु और से,
समृद्ध हो व्यापार,
दुनिया मे अपनी साख रखे,
समदर्शी का भाव रखे,
सबकी प्रगति का सहभागी,
ऐसी ऊंची साख रखे,
जन जन का हो तारणहारा,
ऐसा हो आधार,
प्रगतिशील को विकसित कर दे,
ऐसी बने सरकार।

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हम जिनके लिए बाहें फैलाये बैठे है,
वो आस्तीन में अपने सांप छुपाये बैठे है।
हम समझते रहे जिसको परम ज्ञानी,
अक्ल पर उल्लू जमाये बैठे है।
जमाने का दस्तूर सा बन गया है,
कौवा मोती चुग रहा है,
और हंस कचरे पर नज़र गड़ाए बैठे है।
देख सुन कर, सुबह सुबह का चलचित्र,
लगता है ज्ञान सरोवर में डुबकी लगाये बैठे है,
ढोंगी जब से बन बैठे महात्मा,
पढ़े लिखे ज्ञानी, चने लोहे के चबाये बैठे है।
बचकर भी इन सब से, जाए कहाँ,
जंगल मे खूंखार जानवर तो,
शहर में खूंखार आदमी बैठे है,
चला आया, सुनकर किस्से वीरता के,
पता चला कहीं आतंकी, कही नेता बैठे है।
काफी नही देश को डुबाने हेतु गद्दारो की फौज,
वफादारी के ढोंगी आस्तीनें चढ़ाये बैठे है॥
सोचते है कि ना उलझे इन झंझावातों में,
पर तब ख्याल आता है,
हम दिलों में कायरता नही,
वीरता को छुपाएं बैठे है।

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खोल कर बैठा था जिंदगी की किताब,
पहले पन्ने पर मेरी मां का नाम था,
निर्मला बेगवॉनी presents…..
पन्ना पलटा,
सबको मेरी अहमियत का अहसास कराता,
सबसे बड़े शब्दो मे लिखा शीर्षक,
फिर सफर शुरू हुआ,
सबका आभार किया,
सब महत्वपूर्ण किरदारों को याद किया,
फिर पढ़ता गया, पलटता गया,
हर पन्ना उलटता गया।
कुछ पन्ने नामुराद थे,
लिखे हुए शब्द बहुत खराब थे,
भावनाओ का बोझ था,
हटाना चाहा,
हटा ना पाया,
जिंदगी का यही फलसफा था,
हर एक लम्हा जीना था,
हर किरदार से मिलना था,
हर किरदार को परखना था,
वो हसीन लम्हे फुर्र से उड़ गए,
जिन लम्हो को फिर जीना था,
उन्ही यादों में बरसों खोना था,
उन पन्नों ने खत्म होने का नाम ना लिया,
जिन पन्नो का ना होना था,
देख जिन्हें, बरसो रोना था,
कुछ हल्की मुस्कान लाते थे,
कुछ चेहरे पर तनाव लाते थे,
कुछ पन्ने यू ही छोड़ जाते थे,
कभी खुद को भूल जाते थे,
इस सफर में बहुत कुछ जिया,
किसी को याद किया,
किसी को भुला दिया,
बस फिर धीरे धीरे चलता गया,
हर लम्हे को जीता गया,
देखता रहा दुनिया के रंग,
कभी रहा बेखबर,
कभी बदल लिए ढंग,
अब जिंदगी पूरी तरह जीना चाहता हूँ,
हर एक लम्हे को छूना चाहता हूँ,
कल से कोई शिकायत नही,
कल से कोई चाह नही,
जिंदा हूँ, बस आज को जीना चाहता हूँ।
“भरत” बस आज में जीना चाहता हूँ।

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