बांध रखा था पुलिंदा शिकायतों का,
पास क्या आये,
सब शिकवे भूल गए।
काटने को दौडती थी तन्हाईयाँ,
वो करीब क्या आये,
सारी तन्हाई भूल गए।
जलाते थे उम्मीदों के चिराग हर दिन,
करते रहते थे रोशन चहरे का इंतज़ार,
पास क्या आये,
सब अंधेरे बताना भूल गए।
रिसते थे घाव,जो थे गहरे,
यादों की मरहम से सहेजते थे थोड़े,
दीदार क्या हुआ,
“भरत” जख्म दिखाना भूल गए।
Archive for October, 2018
भूल गए
Posted in Just मोहब्बत, tagged 2018, aadat, aansu, अरमान, आँचल, आदत, आलिंगन, इच्छा, उम्मीद, कवि, कविता, गम, जिंदगी, जीवन, दिल, प्यार, फरियाद, बेगवानी, बेगवॉनी, भरत, भरत बेगवानी, भूल, मेरी कामना, राह, रिश्ते, लम्हे, शायरी, सुकून, हिंदी, हिंदी कविता, Begwani, Bharat, bharat jain, dard, dil, gam, hindi kavita, Hindi poem, hindi poetry, kavita, khushi, Madhushala, Poem, Poetry, pyaar, rajaldesar, relationship, shayar, shayari, Yaad on October 26, 2018| Leave a Comment »
फरियाद
Posted in Just मोहब्बत, tagged 2018, aansu, ajnabee, अरमान, आदत, इच्छा, उम्मीद, कवि, कविता, गम, चाँद का टुकड़ा, जाने वाले, जिंदगी, जीना, जीवन, दिल, प्यार, फरियाद, बूंद, बेगवानी, बेगवॉनी, भरत, भरत बेगवानी, मेरी कामना, राजलदेसर, लम्हे, शायरी, सन्नाटा, सुकून, स्त्री, हिंदी, Begwani, Bharat, bharat Begwani, bharat jain, college, dard, dil, gam, Hindi, hindi kavita, Hindi poem, hindi poetry, jeevan, Jindgi, kavita, khushi, relationship, shayar, shayari, Yaad on October 22, 2018| Leave a Comment »
चले आये है आज फिर,
उसी आवाज को सुनने,
उसी का नाम लेकर के,
उसी के साथ ही चलने,
एक बार फिर से,
पुरजोर कोशिश करने,
मिल जाये वो हमें,
एक बार फिर से फरियाद करने,
करु क्या, दिल ही ऐसा है,
तमन्ना फिर उमड़ती है,
आरजू फिर से बन बैठी,
उसके दीदार करने की,
वो कहता है,
चले जाओ,
तुम दूर नजरो से,
वो कहता है,
मिटा दो,
मुझको यादों से,
वो कहता है,
दफन कर दो,
जो भी एहसास बाकी है,
कैसे मिटा दूं,
जो भी लम्हे,
यादों मैं बैठे है,
बंद पलको में,
सपने सुनहरे है,
निशानी बनाया है जिसको,
वो जख्म गहरे है,
खामोशी की तान के,
नगमे सुनहरे है,
डूब जाऊ यादों में,
सागर ज्यूँ गहरे है,
दुनिया छोड़ जाऊ,
यह मुश्किल नही लगता,
बस भूल जाऊ तुम्हे,
“भरत” मुमकिन नही लगता।
विजयादशमी
Posted in What I Feel, tagged 2018, अंधकार भगाये, उत्तम धर्म, कविता, जीत, जीवन, त्यौहार, दशहरा, दिवस, दीप, दीपावली, दीवार, दुश्मनी, दोस्ती, धर्म, धर्म के नाम पर, बेगवानी, बेगवॉनी, भरत, भरत बेगवानी, भारत, मानवता, मैत्री, राजलदेसर, राम, रावण, लक्षमीनारायण, विजयादशमी, विश्व, वैर, शाम, शायरी, हनुमान, हिंदी, हिंदी कविता, Begwani, Bharat, Deepawali, Diwali, hindi kavita, Hindi poem, hindi poetry, kavita on October 19, 2018| Leave a Comment »
काम, क्रोध, मद, मोह,
लोभ, द्वेष, हिंसा, चोरी,
आलस्य और अहंकार,
ये दस दुर्गुण का दहन करो,
तो मने दशहरा त्योहार,
मने दशहरा त्योहार,
दशो दिशाएं चहके,
मानवता की महक,
हर तरफ महके,
कलयुग में फिर हो जाये,
राम का अवतार,
इन दुर्गुणो का मानव,
कर ले गर संहार।
कर ले गर संहार,
अंदर का रावण जल जाए,
राम राज्य का सपना,
फिर से सच हो जाये,
प्रेम भाईचारा हर तरफ,
फैल सा जाए,
विजयादशमी पर्व,
“भरत” सार्थक हो जाये।
मैं फिर से हार जाता हूँ
Posted in What I Feel, tagged 2018, ajnabee, आदत, इच्छा, कविता, गम, जिंदगी, जीना, बेगवानी, बेगवॉनी, भरत, भरत बेगवानी, मेरी कामना, यादें, राजलदेसर, शायरी, हिंदी, हिंदी कविता, Bharat, dard, dil, hindi kavita, Hindi poem, hindi poetry, Jindgi, kavita, Khushboo, khushi, Poem, Poetry, pyaar, relationship, shayar, shayari, star, Yaad on October 18, 2018| Leave a Comment »
तू पास होता है,
ये दिल मुस्कुराता है,
तेरा कुछ दूर जाना,
मुझे बिल्कुल ना भाता है,
तेरे सपने सजाने में,
बड़ा आनंद आता है,
तेरी मुस्कान को देखु,
बडा शकून आता है,
काश ये सच हो,
यही सपने सजाता हूँ,
तू है आज पराया,
एक पल भूल जाता हूँ,
“भरत” हसरत लिए दिल मे,
मैं फिर से हार जाता हूँ।
खुशबू
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आज खुशबू ने फिर से,
अपने आप को उभारा,
खुद को सूखे पड़े फूल,
से बाहर निकाला,
चल पड़ी हवा के संग,
कई नथूनों को पुकारा,
कई दिलो को संवारा,
आखिरकार आज फिर उसने,
तोड़ कर निराशा के ताले,
खोल दिये अपने लिए,
नभ के नव उजाले॥