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Posts Tagged ‘bharat jain’


कही होता था अहसास,
कुछ अधूरा सा लगता था,
टंटोलता था रिश्ते को,
कुछ खालीपन सा लगता था।
जीने लगा जब इस अहसास को,
कुछ अजीब सा शुकुन मिला,
कुछ समझा उसको,
कुछ ओर समझने को,
दिल मचलने लगा।
बातें, मुलाकाते और अरमान,
सब परवान चढ़ते गए,
ये खालीपन के पैमाने,
खुद ब खुद भरते गए।
रिश्तों में गर्माहट और
एक दूजे के ख्याल,
की बदली छाने लगी।
मुझे उसकी और उसे मेरी,
जरूरत समझ आने लगी।
रिश्तों की यह अनोखी सुंदरता,
नजर आ रही थी,
पूर्णता एक से नही,
दोनों से ही बन पा रही थी,
ये उसका खालीपन,
मुझ में समा रहा था,
मेरे खालीपन को पूर्ण कर,
मुझे पूरा बना रहा था।

एक बात जो समझने में काफी समय लगा,
दरअसल,
ये खालीपन ही जीवन का सार है,
जब ये दूसरे के खालीपन से मिल जाता है,
तो दोनों ही पूर्णता प्राप्त कर लेते है,
जरूरत है,
तो सिर्फ समझने की,
ना कि मूल्यांकन करने की।

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हम जिनके लिए बाहें फैलाये बैठे है,
वो आस्तीन में अपने सांप छुपाये बैठे है।
हम समझते रहे जिसको परम ज्ञानी,
अक्ल पर उल्लू जमाये बैठे है।
जमाने का दस्तूर सा बन गया है,
कौवा मोती चुग रहा है,
और हंस कचरे पर नज़र गड़ाए बैठे है।
देख सुन कर, सुबह सुबह का चलचित्र,
लगता है ज्ञान सरोवर में डुबकी लगाये बैठे है,
ढोंगी जब से बन बैठे महात्मा,
पढ़े लिखे ज्ञानी, चने लोहे के चबाये बैठे है।
बचकर भी इन सब से, जाए कहाँ,
जंगल मे खूंखार जानवर तो,
शहर में खूंखार आदमी बैठे है,
चला आया, सुनकर किस्से वीरता के,
पता चला कहीं आतंकी, कही नेता बैठे है।
काफी नही देश को डुबाने हेतु गद्दारो की फौज,
वफादारी के ढोंगी आस्तीनें चढ़ाये बैठे है॥
सोचते है कि ना उलझे इन झंझावातों में,
पर तब ख्याल आता है,
हम दिलों में कायरता नही,
वीरता को छुपाएं बैठे है।

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खोल कर बैठा था जिंदगी की किताब,
पहले पन्ने पर मेरी मां का नाम था,
निर्मला बेगवॉनी presents…..
पन्ना पलटा,
सबको मेरी अहमियत का अहसास कराता,
सबसे बड़े शब्दो मे लिखा शीर्षक,
फिर सफर शुरू हुआ,
सबका आभार किया,
सब महत्वपूर्ण किरदारों को याद किया,
फिर पढ़ता गया, पलटता गया,
हर पन्ना उलटता गया।
कुछ पन्ने नामुराद थे,
लिखे हुए शब्द बहुत खराब थे,
भावनाओ का बोझ था,
हटाना चाहा,
हटा ना पाया,
जिंदगी का यही फलसफा था,
हर एक लम्हा जीना था,
हर किरदार से मिलना था,
हर किरदार को परखना था,
वो हसीन लम्हे फुर्र से उड़ गए,
जिन लम्हो को फिर जीना था,
उन्ही यादों में बरसों खोना था,
उन पन्नों ने खत्म होने का नाम ना लिया,
जिन पन्नो का ना होना था,
देख जिन्हें, बरसो रोना था,
कुछ हल्की मुस्कान लाते थे,
कुछ चेहरे पर तनाव लाते थे,
कुछ पन्ने यू ही छोड़ जाते थे,
कभी खुद को भूल जाते थे,
इस सफर में बहुत कुछ जिया,
किसी को याद किया,
किसी को भुला दिया,
बस फिर धीरे धीरे चलता गया,
हर लम्हे को जीता गया,
देखता रहा दुनिया के रंग,
कभी रहा बेखबर,
कभी बदल लिए ढंग,
अब जिंदगी पूरी तरह जीना चाहता हूँ,
हर एक लम्हे को छूना चाहता हूँ,
कल से कोई शिकायत नही,
कल से कोई चाह नही,
जिंदा हूँ, बस आज को जीना चाहता हूँ।
“भरत” बस आज में जीना चाहता हूँ।

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स्वपन में, या सजगता से, मोड़ यू ही आते रहेंगे,
विध्वंस कही, कही नव सृजन, गीत यू ही गाते रहेंगे,
पथ अनेकों, मंजिल एक, पथिक को भरमाते रहेंगे,
राहों में द्वंद, मन में अंतर्द्वंद, पथ चुनें पर कौनसा।

प्राणी जन्मा, दुनिया हंसी, रुला कर सबको, चला गया,
बीज दफन हो, फुल खिलाया, फिर बीज देकर चला गया,
तुफानो में बिखरे घरोंदे, कुछ टूटे वृक्ष भी दे गया,
टूटा देख घरोंदा या नव सृजन के गीत गा, पथ चुनु पर कौनसा।

दो पल की यह जिंदगानी, उधारी भी है चुकानी,
व्यापारी बन कर के, आगे की है निधि कमानी,
पल पल का चिंतन करूं, हर पल का स्मरण करूं,
आगे की निधि बनाऊ या पीछे की लुटाऊं,पथ चुनु पर कौनसा।

तेल भरा है दीवट में, बाती को आग लगाऊ,
करू स्नेह संचार जगत में, या जल कर रोशन हो जाऊं,
करू पतंगों से स्नेह या, उनकी मंजिल बन जाऊ,
चिंतन के स्वर समझू या गान विरक्ति का गाऊं, पथ चुनु पर कौनसा।

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नव ऊर्जा का संचार हो,
दुनिया ये गुलजार हो,
खुशियों की कलियां महके,
नव वर्ष का ये आगाज हो।

दुख के बादल छंट जाए,
आनंद की फुहार हो,
खुशबू महके सारे नभ में,
प्रदूषण का काम तमाम हो,
स्वच्छता की पौध लगाए,
स्वस्थता की बयार हो,
खुशियों की कलियां महके,
नव वर्ष का ये आगाज हो।

अच्छाई का संकल्प करें,
बुराई का नाम ना हो,
पर हित मे भी समय बिताए,
दुखी कोई इंसान ना हो,
निज पर शासन करे स्वयं हम,
अनुशासनमय संसार हो,
खुशियों की कलियां महके,
नव वर्ष का ये आगाज हो।

राष्ट्र प्रगति की राह चले,
भ्रष्टाचार का काम तमाम हो,
दुश्मन भी दोस्त बन जाये,
ऐसा हमारा अभियान हो,
कथनी करनी की समानता में,
ना कोई भी व्याधान हो,
खुशियों की कलियां महके,
नव वर्ष का ये आगाज हो।

हर बच्चे को शिक्षा मिले,
हर भूखे को भोजन हो,
हर नारी की हो सुरक्षा,
ना भ्रूण हत्या का नाम हो,
रिश्वतखोरी की चित्ता जलाये,
ना बेरोजगार इंसान हो,
खुशियों की कलियां महके,
नव वर्ष का ये आगाज हो।

कानून के हाथों में मजबूती,
अपराधों का निशान ना हो,
जनता के साथ न्याय करे,
सरकारों का अभियान हो,
स्वस्थ जीवन की मंगल कामना,
अस्पतालों के मंगल गान हो,
खुशियों की कलियां महके,
नव वर्ष का ये आगाज हो।

सूरज भी उगे सुनहरा,
शीतल चंदा का काम हो,
प्राण वायु में श्वास लेकर,
गुणवत्ता पूर्ण आहार हो,
धर्म कर्म की हो प्रबलता,
संत हर एक इंसान हो,
खुशियों की कलियां महके,
नव वर्ष का ये आगाज हो।

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कभी इधर देखता हूँ,
कभी उधर देखता हूँ,
नशे में मदमस्त,
हर तरफ देखता हूँ,
कुछ को दौलत का नशा है,
कुछ को सत्ता का नशा है,
कुछ को बेवजह नशा है,
कुछ को ख़ुशी का नशा है,
कुछ को अभावो का नशा है,
कुछ को धर्म का नशा है,
कुछ को शक्ति का नशा है,
हर नशे से बचने की राहें ढूंढता हूँ,
इंसान ढूंढता हूँ,
इंसानियत ढूंढता हूँ,
हर इंसान में छुपा,
भगवान ढूंढता हूँ।

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यह ईश्वर का वरदान है,
हर पल दिल के पास है,
जीवन का आधार है,
मेरे माता पिता,
मेरे लिए संसार है।

मुँह में जबान थी,
शब्द सिखाया,
पैरों में जान थी,
चलना सिखाया,
हाथो में पकड़ थी,
पकड़ना सिखाया,
दिमाग मे शक्ति थी,
अच्छा भला सिखाया,
मैं तो था माटी का पुतला,
मुझको एक इंसान बनाया।
भगवान ने मुझको जीवन दिया,
जीना बोलो किसने सिखाया?
बिना आपके मार्गदर्शन के,
जीवन यह बेजार है,
मेरे माता पिता,
मेरे लिए संसार है।

मुझको मुझसे मिलवाया,
दुनिया से परिचित करवाया,
जैसे जैसे बड़ा हुआ,
मुश्किल खड़ी थी राहों में,
अनजानी दुनिया से लड़कर,
तुफानो में चलना सिखाया,
हर कसौटी जीवन की,
हरदम सिर पर हाथ पाया,
जब भी कोई द्वंद हुआ,
हर एक का समाधान पाया,
आज भी जब घर लौटू,
रहता मेरा इंतजार है,
ये मात्र इंसान नही,
अविरल अमृत धार है।
मेरे माता पिता,
मेरे लिए संसार है।

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यह ईश्वर का वरदान है,
हर पल दिल के पास है,
जीवन का आधार है,
मेरे माता पिता,
मेरे लिए संसार है।

मुँह में जबान थी,
शब्द सिखाया,
पैरों में जान थी,
चलना सिखाया,
हाथो में पकड़ थी,
पकड़ना सिखाया,
दिमाग मे शक्ति थी,
अच्छा भला सिखाया,
मैं तो था माटी का पुतला,
मुझको एक इंसान बनाया।
भगवान ने मुझको जीवन दिया,
जीना बोलो किसने सिखाया?
बिना आपके मार्गदर्शन के,
जीवन यह बेजार है,
मेरे माता पिता,
मेरे लिए संसार है।

मुझको मुझसे मिलवाया,
दुनिया से परिचित करवाया,
जैसे जैसे बड़ा हुआ,
मुश्किल खड़ी थी राहों में,
अनजानी दुनिया से लड़कर,
तुफानो में चलना सिखाया,
हर कसौटी जीवन की,
हरदम सिर पर हाथ पाया,
जब भी कोई द्वंद हुआ,
हर एक का समाधान पाया,
आज भी जब घर लौटू,
रहता मेरा इंतजार है,
ये मात्र इंसान नही,
अविरल अमृत धार है।
मेरे माता पिता,
मेरे लिए संसार है।

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दीवाली के शोर ने,
बाजारों की चकाचौंध ने,
और मिठाई की दुकानों ने,
तरसा दिया था उजालों ने,
मेरा घर रोशन किया,
पड़ोसी के दियो के उजालों ने।

बाजारों में बढ़ती महंगाई,
मौके का फायदा उठाती दुकाने,
कुछ खरीदने को तरसता मन,
पर मजबूर करती खाली जेब,
दिल मे मिठास घोल दी,
मीठी शुभकामना देने वालों ने।

रिश्वत से भर लिया घर, लेने वालों ने,
अवसर का लाभ लिया,
फायदा उठाने वालों ने,
पैसे वाले, पटाखें शराब और
जुए में फूंक के सोये,
खाली जेब वाले भूखे ही सोये,
“भरत” ये कैसी दीवाली,
अंधेरे छोड़ दिये उजालों ने,
मांगी थी सुख समृद्धि शांति भरी नींद,
पर सोने ना दिया इन्ही सवालों ने।

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बांध रखा था पुलिंदा शिकायतों का,
पास क्या आये,
सब शिकवे भूल गए।
काटने को दौडती थी तन्हाईयाँ,
वो करीब क्या आये,
सारी तन्हाई भूल गए।
जलाते थे उम्मीदों के चिराग हर दिन,
करते रहते थे रोशन चहरे का इंतज़ार,
पास क्या आये,
सब अंधेरे बताना भूल गए।
रिसते थे घाव,जो थे गहरे,
यादों की मरहम से सहेजते थे थोड़े,
दीदार क्या हुआ,
“भरत” जख्म दिखाना भूल गए।

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