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Posts Tagged ‘दिल’


यह ईश्वर का वरदान है,
हर पल दिल के पास है,
जीवन का आधार है,
मेरे माता पिता,
मेरे लिए संसार है।

मुँह में जबान थी,
शब्द सिखाया,
पैरों में जान थी,
चलना सिखाया,
हाथो में पकड़ थी,
पकड़ना सिखाया,
दिमाग मे शक्ति थी,
अच्छा भला सिखाया,
मैं तो था माटी का पुतला,
मुझको एक इंसान बनाया।
भगवान ने मुझको जीवन दिया,
जीना बोलो किसने सिखाया?
बिना आपके मार्गदर्शन के,
जीवन यह बेजार है,
मेरे माता पिता,
मेरे लिए संसार है।

मुझको मुझसे मिलवाया,
दुनिया से परिचित करवाया,
जैसे जैसे बड़ा हुआ,
मुश्किल खड़ी थी राहों में,
अनजानी दुनिया से लड़कर,
तुफानो में चलना सिखाया,
हर कसौटी जीवन की,
हरदम सिर पर हाथ पाया,
जब भी कोई द्वंद हुआ,
हर एक का समाधान पाया,
आज भी जब घर लौटू,
रहता मेरा इंतजार है,
ये मात्र इंसान नही,
अविरल अमृत धार है।
मेरे माता पिता,
मेरे लिए संसार है।

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यह ईश्वर का वरदान है,
हर पल दिल के पास है,
जीवन का आधार है,
मेरे माता पिता,
मेरे लिए संसार है।

मुँह में जबान थी,
शब्द सिखाया,
पैरों में जान थी,
चलना सिखाया,
हाथो में पकड़ थी,
पकड़ना सिखाया,
दिमाग मे शक्ति थी,
अच्छा भला सिखाया,
मैं तो था माटी का पुतला,
मुझको एक इंसान बनाया।
भगवान ने मुझको जीवन दिया,
जीना बोलो किसने सिखाया?
बिना आपके मार्गदर्शन के,
जीवन यह बेजार है,
मेरे माता पिता,
मेरे लिए संसार है।

मुझको मुझसे मिलवाया,
दुनिया से परिचित करवाया,
जैसे जैसे बड़ा हुआ,
मुश्किल खड़ी थी राहों में,
अनजानी दुनिया से लड़कर,
तुफानो में चलना सिखाया,
हर कसौटी जीवन की,
हरदम सिर पर हाथ पाया,
जब भी कोई द्वंद हुआ,
हर एक का समाधान पाया,
आज भी जब घर लौटू,
रहता मेरा इंतजार है,
ये मात्र इंसान नही,
अविरल अमृत धार है।
मेरे माता पिता,
मेरे लिए संसार है।

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दीवाली के शोर ने,
बाजारों की चकाचौंध ने,
और मिठाई की दुकानों ने,
तरसा दिया था उजालों ने,
मेरा घर रोशन किया,
पड़ोसी के दियो के उजालों ने।

बाजारों में बढ़ती महंगाई,
मौके का फायदा उठाती दुकाने,
कुछ खरीदने को तरसता मन,
पर मजबूर करती खाली जेब,
दिल मे मिठास घोल दी,
मीठी शुभकामना देने वालों ने।

रिश्वत से भर लिया घर, लेने वालों ने,
अवसर का लाभ लिया,
फायदा उठाने वालों ने,
पैसे वाले, पटाखें शराब और
जुए में फूंक के सोये,
खाली जेब वाले भूखे ही सोये,
“भरत” ये कैसी दीवाली,
अंधेरे छोड़ दिये उजालों ने,
मांगी थी सुख समृद्धि शांति भरी नींद,
पर सोने ना दिया इन्ही सवालों ने।

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बांध रखा था पुलिंदा शिकायतों का,
पास क्या आये,
सब शिकवे भूल गए।
काटने को दौडती थी तन्हाईयाँ,
वो करीब क्या आये,
सारी तन्हाई भूल गए।
जलाते थे उम्मीदों के चिराग हर दिन,
करते रहते थे रोशन चहरे का इंतज़ार,
पास क्या आये,
सब अंधेरे बताना भूल गए।
रिसते थे घाव,जो थे गहरे,
यादों की मरहम से सहेजते थे थोड़े,
दीदार क्या हुआ,
“भरत” जख्म दिखाना भूल गए।

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चले आये है आज फिर,
उसी आवाज को सुनने,
उसी का नाम लेकर के,
उसी के साथ ही चलने,
एक बार फिर से,
पुरजोर कोशिश करने,
मिल जाये वो हमें,
एक बार फिर से फरियाद करने,
करु क्या, दिल ही ऐसा है,
तमन्ना फिर उमड़ती है,
आरजू फिर से बन बैठी,
उसके दीदार करने की,
वो कहता है,
चले जाओ,
तुम दूर नजरो से,
वो कहता है,
मिटा दो,
मुझको यादों से,
वो कहता है,
दफन कर दो,
जो भी एहसास बाकी है,
कैसे मिटा दूं,
जो भी लम्हे,
यादों मैं बैठे है,
बंद पलको में,
सपने सुनहरे है,
निशानी बनाया है जिसको,
वो जख्म गहरे है,
खामोशी की तान के,
नगमे सुनहरे है,
डूब जाऊ यादों में,
सागर ज्यूँ गहरे है,
दुनिया छोड़ जाऊ,
यह मुश्किल नही लगता,
बस भूल जाऊ तुम्हे,
“भरत” मुमकिन नही लगता।

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आज खुशबू ने फिर से,
अपने आप को उभारा,
खुद को सूखे पड़े फूल,
से बाहर निकाला,
चल पड़ी हवा के संग,
कई नथूनों को पुकारा,
कई दिलो को संवारा,
आखिरकार आज फिर उसने,
तोड़ कर निराशा के ताले,
खोल दिये अपने लिए,
नभ के नव उजाले॥

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बादल

बादल जो घिरे,
कई रंगों से भरे,
आपस मे मिले,
मिल कर कड़के,
किरणों से मिले,
सतरंगी आँचल लिए,
कल्पना के पटल पर,
हजारो रंग भर दिए,
आकाश में,
उन्मुक्त विचरते,
पवन के वेग संग,
आंनद में भरते,
हज़ारो बूंद बन,
धरती पर बिखरते,
नाचती कूदती बूंदों सी,
अठखेलिया करते,
मिल कर रेत संग,
उसके सीने में दफन होते,
हर एक के जीवन मे,
स्फूर्ति भरते,
रेत से नीचे जा,
धरती के हृदय में जा मिलते,
अमृत सम ऊपर आकर,
मानव की,
प्यास हरते।
या बादल बन,
फिर से,
रंग प्रकृति में भरते।

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बादल जो घिरे,
कई रंगों से भरे,
आपस मे मिले,
मिल कर कड़के,
किरणों से मिले,
सतरंगी आँचल लिए,
कल्पना के पटल पर,
हजारो रंग भर दिए,
आकाश में,
उन्मुक्त विचरते,
पवन के वेग संग,
आंनद में भरते,
हज़ारो बूंद बन,
धरती पर बिखरते,
नाचती कूदती बूंदों सी,
अठखेलिया करते,
मिल कर रेत संग,
उसके सीने में दफन होते,
हर एक के जीवन मे,
स्फूर्ति भरते,
रेत से नीचे जा,
धरती के हृदय में जा मिलते,
अमृत सम ऊपर आकर,
मानव की,
प्यास हरते।
या बादल बन,
फिर से,
रंग प्रकृति में भरते।

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कल्पना में घूमते शब्द,
जेहन में कौंधते विचार,
सामने चलते हालात,
दिल मे उबलते जज्बात,
क्या करूँ, क्या ना करू,
मुझसे ये पूछे जिंदगी।

तेज चलती,
धीमी चलती,
कल कल बहती,
खुश रहती,
लालसा में,
आकर्षण में,
प्रार्थना में,
आराधना में,
चाह में,
खयाल में,
क्या मिला जबाब इसका,
मुझसे ये पूछे जिंदगी।

कभी छलावा,
कभी दिखावा,
कभी मर्म,
कभी हकीकत,
कभी भरम,
कभी उमंग,
कभी सफर,
कभी सिफर,
क्या पाया जबाब इसका,
मुझसे ये पूछे जिंदगी।

बड़ी अमृतभरी है,
बड़ी हलाहल सी भी है,
बड़ी उमस है,
बारिश की बूंदे भी है,
बड़ी जद्दोजहद है,
बड़ी ही घुटन है,
लंबी बनु निरर्थक सी,
या सार्थक बनु छोटी सी,
मुझसे ये पूछे जिंदगी।

रोती हुई ये जिंदगी,
हंसती हुई भी जिंदगी,
बंधन में बैठी सोचती,
फुरसत मैं बैठी बुनती,
“भरत” मौत से बदतर हूँ, या
मैं मौत से बेहतर हूँ,
मुझसे ये पूछे जिंदगी।

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मेरे और जिंदगी में अक्सर,
कशमकश चलती है,
अगर भागता हूँ पीछे,
तो और तेज भागती है,
थक कर ठहर जाऊ,
तो यह भी थमी सी लगती है,
अगर मैं खुशी से देखु,
तो यह सतरंगी सी दिखती है,
अगर बैठ कर सोचु,
तो यह खाली केनवास सा दिखती है,
अगर मैं बनु ज्यादा चालक,
यह उलझी सी लगती है,
अगर में लेने लगू आनंद,
यह बड़ी सुलझी दिखती है,
जिंदगी अगर में तमन्ना के पहाड़ चुनु,
बहुत दूर सी दिखती है,
अगर मैं चुन लू संतोष का फल,
यह परिपूर्ण सी दिखती है।

दोस्तो एक बात यही समझ मे आयी है, जीवन आपकी अपनी कृति है, जैसा आप बनाना चाहते हो, बनती जाती है, रंग भरो तो रंगीन, तेज चलो तो तेज, आनंद लो तो सहज……

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