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Archive for December, 2017


कुछ अक्स बस दिल मे रह जाते है,
घोंसले छोड़ परिंदे भी उड़ जाते है,
वो सूरते जिनको देख कर जीते थे,
ये चक्षु अब देखने को तरस जाते है,
जिंदगी के रंगमंच पर निभा,
अपना किरदार बखूबी,
दुखद अंत के साथ,
आंखों में अश्क़ पिरो जाते है,
चले जाते है यकायक ऐसे,
जाने वाले लौट के नही आते है॥

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बीज धरती में दबा,
थी पौधा बन जाने की क्षमता,
सिर्फ मिट्टी और नमी का सहयोग काफी ना था,
मिट्टी से निकल बाहर,
महसूस की थी सूरज की तपिश,
ठंडी हवा के संग बस चहकना काफी ना था,
दिया आसरा तितलियों को,
भंवरो ने भी रसपान किया,
सिर्फ कोपलों का निकलना काफी ना था,
प्रभु चरणों मे अर्पित हुआ,
सहा था टहनी से बिछोह का गम,
बस फूल बन इठलाना काफी ना था,
मुकाम जिंदगी में पाया उसने,
हर बाधा को हटाया उसने,
दुसरो के भरोसे बैठना काफी ना था॥

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ये कैसी तमन्ना है,
जो फिर से जी उठती है,
उनकी एक झलक काफी नही,
ये कैसी चाहत है,
जो अधूरी सी रह जाती है,
उनका मेरे जीवन मे आना काफी नही,
ये कैसा परिंदा है,
जो उन्मुक्त गगन में भी फड़फड़ाता है,
पिंजरा खोल देना ही काफी नही,
अंदर अब भी है घुटन,
तोड़ दो सारी दीवारे आज,
दरवाजा खोल देना काफी नही,
बहुत कुछ पाना है,
मिल जाये दो चार जीवन और,
ये एक जिंदगी काफी नही॥

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