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Archive for June, 2016

दिल से


लड़ते रहे तुफानो से, दिया बनकर,

चलते रहे कांटो पर फूल बनकर,

थी ज़माने की चाहत टूट जाए हम,

बिखरते रहे हम भी खुशबू बनकर।।

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होठों में क्या बात छुपी,
मुस्कान अधूरी लगती है,
आँखों में है नींद छुपी,
तलाश अधूरी लगती है,
धड़कन में ख़ामोशी सी,
ये बाते अधूरी लगती है,
ना दिखे अगर तू महफिल में,
महफ़िल अधूरी लगती है,
जाने क्यों तेरे बिन “भरत”,
ये शाम अधूरी लगती है ।।

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संतान की खुशियो की खातिर,
पत्थर से पानी निचोड़ते,
खुद को तपा कर धुप में,
तेरे खातिर छाया ढूंढते,
खुद रातों की नींद उड़ा कर,
तेरी मखमली नींदे टंटोलते,
बन कर सहारा खड़े हुए है,
आंधी तुफा में न डोलते,
सह जाते है हर गम यु ही,
मुख से कुछ ना बोलते,
संतान की आँखों में देख चमक,
उसमे ही खुशियाँ टंटोलते,
खुद दिखते है धीर गंभीर,
मुख से ना कुछ बोलते।

पिता की आँखों में आज भी,
अक्स तुम्हारे दीखते है,
धड़कन को कभी भी सुन लेना,
शब्द तुम्हारे रहते है,
वह हाड मांस की काया है,
संतानो के सपने बसते है,
गर आफत जरा तुम पर आये,
वो अस्त व्यस्त से दीखते है,
गर ख़ुशी तुम्हें मिल जाए कोई,
वो मुस्काते से दीखते है।

वो साया जब तक साथ रहे,
माथे पर “भरत” हाथ रहे,
किस्मत की भी औकात नहीं,
राहे मंजिल तक साफ़ रहे।।

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ना आया लोगों को रुलाना,

दिल में रख खोट, ऊपर से प्यार बरसाना,

बहुत से लोग करते है, धंधा भावनाओं का,

भरत ना आया हमें, गला काट मुस्कुराना।

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बेटी


बेटी बिन संसार अधुरा,
वंश अधुरा, भाई अधुरा।
ममता अधूरी, प्यार अधुरा,
घर की रौनक, मान अधुरा,
बेटी जो घर में आएगी,
लता बन कर छा जाएगी,
सुनी कलाई सजाएगी,
हर अवसर मंगल बनाएगी,
कभी लता बन कर गाएगी,
कभी सानिया बन लहराएगी,
कभी सरोजनी बन जायेगी,
जग पर इंदिरा बन छा जाएगी,
घर तेरा स्वर्ग बना कर बाबुल,
ससुराल भी स्वर्ग बनाएगी,
सोचो सब जन,
माँ का दुलार,
बहिन का प्यार,
पत्नी का साथ,
भाभी से तकरार,
ये सब खुशिया जीवन में लाएगी,
बेटी जो घर में आएगी,
“भरत” घर को स्वर्ग बनाएगी।

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कह दे कोई की जिन्दगी एक कल्पवृक्ष है,
हाथ बढाया और पुरे हुए अरमान सारे,
कह दे कोई की जिन्दगी एक परिंदा है,
फैला दिए पंख और नाप दिए नभ के किनारे,
कह दे कोई जिन्दगी इक नींद है,
देख लिए जिसमे सपने सारे,
कह दे कोई जिन्दगी एक भोर है,
बिखेर दिए है हर और उजारे,
जिन्दगी तो एक मधुर तान है,
मस्ती इसकी पहचान है,
आओ, देखो, खुलकर जियो,
“भरत” यही जिन्दा होने का प्रमाण है।

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कहाँ से चली आती है यादें,
किधर को ले जाती है ये राहे,
सीने में बस जाए अक्स किसी का,
तो कदमो को रोकना आसान नहीं होता,
बहा लो सैलाब-ए-अश्क़ जी भर के,
आखों में बसने वाले को निकालना आसान नहीं होता,
नीलाम हो जाता है शुकुन-ए-दिल,
दिल में छपे नाम मिटाना आसान नहीं होता,
कैसे सो पाओगे चैन की नींद “भरत”,
भुला के किसी को सोना आसान नहीं होता।

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थी तमन्ना शीशे की पत्थर से टकराने की,

टूट कर उसके चारों तरफ बिखर जाने की,

थी तमन्ना मोहब्बत सागर में उतर जाने की,

थाम के उसका हाथ डूब जाने की,

थी तमन्ना मेहंदी कि तरह घूल जाने की,

सुख कर भी उसके हाथों में रह जाने की,

थी तमन्ना उसमे यूँ राम जाने की,

बन कर अक्स उसका, आईने को झुठलाने की,

थी तमन्ना दिए में बाती बन जाने की,

जल कर भी उसमे अहसास रह जाने की,

थी तमन्ना ना भुलाये जाने की,

ना रुलाये जाने की,

ना ठुकराए जाने की,

ना चुभाये जाने की,

क्या जरुरत थी यु रंग बदलने की,

क्या जरुरत थी यु अलविदा कहने की,

चुपचाप खुशबू की तरह हवा हो जाती,

क्या जरुरत थी कुचलने की,

 

अ “भरत” ऐसा नहीं है कि,

अब जरुरत नहीं रही,

तुझे पाने की हसरत नहीं रही,

ये भी नहीं है कि,

मचलती तमन्ना नहीं रही,

बस टूट के बिखर जाने की हिम्मत नहीं रही||

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