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Archive for August, 2009


हर बार दिल के जख्म सुख जाने का एहसास होता है,
फिर भी ना जाने क्यूँ अश्क का रंग लाल होता है|
बारिश की उलझन से,
धरती की तडपन में,
पेड़ों की रौनक से,
पौधों की मस्ती से,
हवाओं की सिहरन से,
मौसम की रंगीनी में,
रातों के अँधेरे में,
सूरज  की किरणों में,
चंदा की रंगत में,
चांदनी की मस्ती में,
तारों के आँचल में,
रखते है आँखों को व्यस्त,
कर के भावो को ध्वस्त,
उनके पास होने का एहसास होता हैं|
भोर की शांति में,
पक्षियों की कलरव में,
बारिश की छमाछम से,
रात की तन्हाई में,
हवाओं के बहने में, और
दिल के कहने में,
कर के लबो को खामोश,
फिर भी क्यों दिल की आवाज़ से होकर त्रस्त,
उनका पास आकर कुछ कह जाने का एहसास होता हैं|
हर बार दिल के जख्म सुख जाने का एहसास होता है,
फिर भी ना जाने क्यूँ अश्क का रंग लाल होता है|

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जब जब देखा कोरा कागज़,

मन को क्यों तेरा ध्यान आया|

नज़रे झुकी और कलम चली,

बस कागज़ पे तेरा नाम आया|

कागज़ पे चलते साथ तेरे,

कभी मिलन, कभी दिल भर आया|

जब जब भी पढ़ा पीछे मुड कर,

चेहरा तेरा ही नज़र आया|

मन ही मन दोहराते रहे,

जान कर भी अनजान रहे,

दिल की गहराई नापते रहे,

लबों को गतिहीन करके,

आँखों में तेरा नाम आया|

कागज़ की कश्ती चलने लगी,

आँखों की मदमाती बारिश में,

भीग गए इस बारिश में,

मन को क्यों तेरा ध्यान आया……….

जब जब देखा कोरा कागज़……………

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आज भी आई जो होठों पे तुम्हारी बात,
हम मुस्कुरा ना सके।
चाहा कि गुनगुनाए गीत कोई,
पर जुबाँ पर वो लफ्ज ला ना सके।
हलक में ही अटक गयी वो बातें,
जिनको हम तुम्हे बता ना सके।

दिल कि दुनिया यूं उजड़ गयी,
हम यूँ ही देखते रहे खड़े- खड़े,
कुछ भी कर के उसे बचा ना सके।

वो देते रहे दुहाई अपने प्यार की,
वो देते रहे कसमे अपने प्यार की,
हम हुए पत्थर दिल,
और कुछ विरोधाभासों से पार पा ना सके।

आई आंधी कुछ इस तरह से,
छूट गया हाथ, हम चिल्ला ना सके।
अ हवा बड़ी बेरहमी की तुने,
बुझा दिए चिराग मोहब्बत के,
और हम बचा न सके।

देते है हम दोष हर किसी को,
न थी हिम्मत या जुटा न सके।
अन्दर ही सिमट गए सारे जज्बात,
निकले नहीं बाहर या बाहर ला न सके।

कल उनकी बातों को दिल से लगा न सके,
आज उनकी बाते दिल से ऐसे जा लगी,
चाह के भी उन्हें मिटा न सके।

गम नहीं इस बात का, कि उन्हें पा न सके,
गम है इस बात का, कि उन्हें भुला न सके।।

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एक तू थी जो हमारी एक बात भी न सह पाई,
एक हम है जो तेरे बिछोह का गम भी सह गए।
जमाना गुजरा तो लगा, कि सभी जख्म भर गए,
यादों कि एक आंधी आई, सब जख्म हरे हो गए।

याद आती थी,
                              रुलाती थी,
                                                     तडपाती थी,

पर हमने फिर भी हमने इस तन्हाई को वफ़ा माना,
तेरी जुदाई को मिलन माना।

हम तो अपनी वफ़ा के बारे में कुछ भी न कह पाए,
पर आप हमे ना जाने क्या क्या उपाधियाँ दे गए।

हर लम्हा मैं हारा,
         हर लम्हा मैं रोया,
                 हर लम्हा मैंने दर्द लिया,
                         हर लम्हा मैंने जख्म लिया,
                                 हर बार मैं कुछ ना कह पाया,
                                           हर पल मैं तेरी यादों में खोया।

आज भी तेरी यादें हैं,
                                             आज भी तेरी बातें हैं,
आज भी मेरी वफ़ा हैं,
                                              आज भी तेरा दर्द हैं।

आज भी सरताज आपको मैं कुछ नहीं कह पाऊंगा,
विष का घूँट भी खामोशी से पी जाऊंगा,
मरते हुए भी सनम आपको यही दुआ दे जाऊंगा,
ख़ाक में मिल कर भी, आपको आबाद देखना चाहूँगा।

फिर भी अगर ना हो यकीं अ जानेवफा,
जलने के बाद मेरी ख़ाक से आकर पूछ लेना.
तुम्हे यही जबाब मिलेगा,
मैं तुम्हे कल भी चाहता था,
                                      आज भी चाहता हूँ,
                                                                 और कल भी चाहूँगा।।

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