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Posts Tagged ‘क्या बात होगी’


कही होता था अहसास,
कुछ अधूरा सा लगता था,
टंटोलता था रिश्ते को,
कुछ खालीपन सा लगता था।
जीने लगा जब इस अहसास को,
कुछ अजीब सा शुकुन मिला,
कुछ समझा उसको,
कुछ ओर समझने को,
दिल मचलने लगा।
बातें, मुलाकाते और अरमान,
सब परवान चढ़ते गए,
ये खालीपन के पैमाने,
खुद ब खुद भरते गए।
रिश्तों में गर्माहट और
एक दूजे के ख्याल,
की बदली छाने लगी।
मुझे उसकी और उसे मेरी,
जरूरत समझ आने लगी।
रिश्तों की यह अनोखी सुंदरता,
नजर आ रही थी,
पूर्णता एक से नही,
दोनों से ही बन पा रही थी,
ये उसका खालीपन,
मुझ में समा रहा था,
मेरे खालीपन को पूर्ण कर,
मुझे पूरा बना रहा था।

एक बात जो समझने में काफी समय लगा,
दरअसल,
ये खालीपन ही जीवन का सार है,
जब ये दूसरे के खालीपन से मिल जाता है,
तो दोनों ही पूर्णता प्राप्त कर लेते है,
जरूरत है,
तो सिर्फ समझने की,
ना कि मूल्यांकन करने की।

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आज खुशबू ने फिर से,
अपने आप को उभारा,
खुद को सूखे पड़े फूल,
से बाहर निकाला,
चल पड़ी हवा के संग,
कई नथूनों को पुकारा,
कई दिलो को संवारा,
आखिरकार आज फिर उसने,
तोड़ कर निराशा के ताले,
खोल दिये अपने लिए,
नभ के नव उजाले॥

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गुजरा जब कालेज के सामने से,
नज़र पड गयी बरबस कालेज के द्वार पर,
सहम गया वक्त, और ठिठक कर रुक गया,
निकल रहा था दोस्तो की वो टोला,
कुछ हाथों में हाथ थे, कुछ कंधे साथ थे,
कोई हंस रहा था, कोई खीज रहा था,
वक्त शायद 18 साल पहले चला गया था,
चल पड़ा वो पुराना चलचित्र फिर आंखों में,
वो मंजर कैसे भूल पाओगे।

एक दिल आजादी का जश्न मनाता था,
तो एक दिल भविष्य के सपने सजाता था,
वो पहले दिन रैंगिग का डर खूब सताता था,
वो पहले दिन क्लास में नए लोगो से मिलना खूब भाता था,
कुछ नए दोस्तो, कुछ नए चहरो से मिलना समझ आता था,
अपने किस्से, उनकी कहानी सुनना नए अनुभव लाता था,
इनमे से कुछ दोस्त अनमोल बन जायेंगे, ये कौन समझ पाता था,
नया अनुभव, आजादी, दोस्त, पहले दिन का अकेलापन, कैसे भूल पाओगे।

वो केंटीन में समोसे खाना,
बैठ कर ठहाके लगाना,
आज तेरी कल मेरी बारी लगाना,
एक कोल्ड ड्रिंक से 3 दोस्तो को निपटाना,
अपना खत्म कर, दूसरे के हिस्से पर हाथ चलाना,
बैठ कर टेबल का तबला बजाना,
अपने को अनु मालिक समझ गाने गाना,
कभी कॉलेज के बाहर छोले कुलचे खाना,
केले वाले से भाव ताव लगाना,
कोने वाली दूकान में पेट्टी, कोल्डड्रिंक की पार्टी उड़ाना,
क्या वो पल वापिस नहीं लाना चाहोगे।

दोस्तों से गुहार लगाते थे,
ट्यूशन के पैसे बचाते थे,
दोस्तों के ट्यूशन नोट्स की कॉपी कराते थे,
बटुए में ज्यादा कुछ नहीं होता था,
पर दिल में बहुत अमीरी हुआ करती थी,
दोस्तों के रूप में बहुत सी बैंक आस पास घुमा करती थी,
कभी किसी को पैसे की कमी नहीं खलती थी,
वो रईसी के दिन, वो साथ, कैसे भूल पाओगे।

वो बर्थडे का दिन आना,
कई दिन से पैसे बचाना,
महीनो की पाकेट मनी का साफ़ हो जाना,
भाई के बर्थडे पर ग्रैंड पार्टी होगी,
दोस्तों की ऐसी रटन लगाना,
कमीनो का एक भी गिफ्ट ना लेकर आना,
पार्टी में बिन बुलाए फ्रेंड्स को ले आना,
बजट बिगड़ता देख खुद ही पैसे मिलाना,
वो अपनापन, वो बर्थडे, वो दोस्त, कैसे भूल पाओगे।

क्लास बंक करने में बड़ा मजा आता था,
फिर कैंटीन या लाइब्रेरी में बैठा जाता था,
लड़कियों के लिए यह जगह सबसे सेफ थी,
सबसे ज्यादा प्यार के अफ़साने यही गाये जाते थे,
कुछ हँसते चहरे तो, कुछ टूटे दिल पाये जाते थे,
कुछ दोस्त किसी रोते को मनाते पाये जाते थे,
वो कंधे, वो अफ़साने, वो दीवाने, अब कहाँ ढूंढ पाओगे।

परीक्षा के दिन गजब ढाते थे,
अटेंडेंस पूरी करने के लिए NSS, का सहारा लगाते थे,
फाइन भर कर परीक्षा में एंट्री पाते थे,
दिन रात एक हो जाते थे,
केंटीन खाली तो लाइब्रेरी फुल हाउस बन जाते थे,
नोट्स बदलने के सिलसिले और तेज हो जाते थे,
आपस में गठबंधन बनाये जाते थे,
फिर भी जब एक के ज्यादा और दूसरे के कम नंबर आते,
तो कमीनेपन के इल्जाम लगाये जाते थे,
वो समन्वय, वो प्यार भरा धोखा, कैसे भूल पाओगे।

आ गया था अंतिम दिन,
आँखे अब होती थी नम,
नम्बर एक्सचेंज करते थे,
गले मिल कर रोते थे,
Keep in Touch कहते थे,
कितने पीछे छूटे थे,
कितने सपने टूटे थे,
काश वो दिन लंबे हो जाते,
काश वो दिन वापिस आ जाते,
………वो सब कैसे भूल पाओगे………

आज सारे वादे टूट गए है,
जिंदगी की आपाधापी में खो से गए है,
समय की रफ़्तार ऐसी थी,
नौकरी और पैसे की भूल भुलैया में खो से गए है,
आज भी आई याद तो,
होठों पर मुस्कान,
और आँख में नमी आई,
जीने की एक ललक फिर से भर आई,

दोस्तों…
एक बार वापिस मुड़कर देखो,
जिंदगी वापिस मिल जायेगी,
गम की काई मिट जायेगी,
वो यादे फिर से मिल जायेगी,
नजरे रोशन हो जायेगी,
जीवन की उमंग मिल जायेगी।

ना कुछ भूल पाये हो, ना कुछ भूल पाओगे………

ना कुछ भूल पाओगे………

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दिल में ही जो किलस जाते अरमान,  
गर आ जाये लबों पर तो क्या बात होगी|
 
बह जाते है आँखों से अश्रु बन कर ये लफ्ज,
मिल जाए गर जुबां, तो क्या बात होगी,
 
उठती मचलती तमन्नाओ का कोई साहिल नहीं,
दबी कुचली ख्वाहिशों की कोई मंजिल नहीं,
बन जाए गर हकीकत ये तमन्ना, तो क्या……….
 
भेष बदल कर मिलते है मिलने वालें,
मतलब से ही दिल मिलाता है हर कोई,
गर बिन मतलब ही कोई मिल जाए, तो क्या……
 
बावफा ना सही, बेवफा ही सही,
दिल आजमाने को यु ही मिलते है हम,
पहचान जाए गर वफ़ा कोई, तो क्या…..
 
कोई गिला नहीं जिन्दगी, कोई शिकवा नहीं,
जिन्दा रह कर बांटता रहूँ खुशिया सबको,
मर कर भी गर खुश हो जाए कोई, तो क्या……….
 

दूर होकर भी नजदीक लगता है कोई,

नजदीक आकर भी दूर हो जाता है कोई,
नजदीक आकर गर नजदीक हो जाए, तो क्या……
 
मुमकिन हो जाए ये मुमकिन नहीं लगता,
नामुमकिन है ये, ये भी मुमकिन नहीं लगता,
यही गर मुमकिन हो जाए,
तो क्या बात होगी|

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