दौलत की चाह में,
रो रहा है आदमी,
चैन शकुन, जिन्दगी का,
खो रहा है आदमी,
रिश्तों का है भान,
ना दोस्ती का ध्यान,
अपनी ही पीठ में खंजर,
घोप रहा है आदमी,
माँ-बाप, भाई बहिन,
से दूर हो रहा आदमी,
ऊपर से है हँसता,
भीतर से रो रहा है आदमी,
जागने का ढोंग करता,
गहरी मूर्च्छा में है आदमी,
आम की है चाह,
बीज आक के बो रहा आदमी,
सोने की चमक और,
सिक्कों की खनक में,
असली चमक खो रहा आदमी,
इच्छाओं के अनंत आकाश में,
“भरत” क्या खोज रहा है आदमी,
इच्छा परिमाण ही सुख की जड़,
क्यों भूल गया है आदमी।
इच्छा परिमाण
February 11, 2014 by bharatbegwani
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